श्री मोरवीनंदन खाटू वाला श्यामधणी की रंग रंगीली, मनभावन सी, सोहणी-सोहणी सूरत का दर्शन कर म्हारा हिवड़े सु बस ये ही भाव निकल पड्या ह...
सोहणी सलोनी सूरत, म्हारे मन भायी जी...
जुड़ते नयना है वारि वारि, म्हारा सांवरिया...
श्याम रंगीला जी....श्याम रंगीला जी...
"ढूंढा री धरती" ऊपर, थे तो पधारया जी...
खाटू ने अपनो धाम बनाया, म्हारा सांवरिया...
श्याम रंगीला जी....श्याम रंगीला जी...
खाटू ने अपनो धाम बनाया, म्हारा सांवरिया...
श्याम रंगीला जी....श्याम रंगीला जी...
ऊँचे सिंहासन बाबा, आप विराजो जी...
थारी अखंड ज्योत जागे, म्हारा सांवरिया...
श्याम रंगीला जी....श्याम रंगीला जी...
थारी अखंड ज्योत जागे, म्हारा सांवरिया...
श्याम रंगीला जी....श्याम रंगीला जी...
सतरंगी फुला को तो, गजरो गुथायां जी...
थाने भगत पहरावे, म्हारा सांवरिया...
श्याम रंगीला जी... श्याम रंगीला जी...
थाने भगत पहरावे, म्हारा सांवरिया...
श्याम रंगीला जी... श्याम रंगीला जी...
एकादशी न थारी, रात जगावां जी...
भजना में रंग बरसावा, म्हारा सांवरिया
श्याम रंगीला जी... श्याम रंगीला जी...
भजना में रंग बरसावा, म्हारा सांवरिया
श्याम रंगीला जी... श्याम रंगीला जी...
लीले चढ़योड़ा म्हाने, दर्शन दे दीज्यो जी...
मनरे की आस पुराओं, म्हारा सांवरिया...
श्याम रंगीला जी... श्याम रंगीला जी...
मनरे की आस पुराओं, म्हारा सांवरिया...
श्याम रंगीला जी... श्याम रंगीला जी...
सोहणी सलोनी सूरत, म्हारे मन भायी जी...
जुड़ते नयना है वारि वारि, म्हारा सांवरिया...
श्याम रंगीला जी... श्याम रंगीला जी...
उपरोक्त भाव में एक शब्द "ढूंढा री धरती" आया है... कहा जाता है, यह वही दग्ध स्थल है, जहा ढूंढा जलकर भस्म हुई थी, ढूंढा दानवराज हिरण्यकश्यप की बहन होली को ही कहते है... और मान्यता के अनुसार यह वही क्षेत्र है जहाँ, उसने देवताओं से प्राप्त अग्नि में न जलने के वरदान से भक्त प्रहलाद को अग्नि में जलाकर भष्म करने की कोशिश कि, परन्तु श्री हरि के भक्त को कौन मार पाया है... अंतत:, दुष्टा ढूंढा (होली) अपने वरदान के गलत प्रयोग करने के कारण स्वयं ही अग्नि में जलकर भष्म हो गयी...
और इसी घटना के प्रतिक में आज तक हम लोग ढूंढा पूजन कर उसे दहते है... और तब से यह क्षेत्र ढूंढारी कहलाने लगा, इसी क्षेत्र में खट्वा नाम की नगरी थी... जहा बाबा श्याम का शीश पवित्र श्याम कुण्ड से प्रकट हुआ था, और अब यह खट्वा नगरी बाबा श्याम की कृपा से, खाटू श्याम जी के नाम से जानी जाती है...
श्री श्याम बाबा की स्तुति में भी "ढूंढा" का नाम आता है...
"धन्य ढूंढारो देश है, खाटू नगर सुजान...
अनुपम छवि श्री श्याम की, दर्शन से कल्याण..."
नई दिल्ली के परम श्याम भक्त श्री श्री विश्वनाथ जी "वशिष्ठ " जी ने इस क्षेत्र की महिमा का गुणगान करते हुए "श्री श्याम चरित्र" के अष्टम सौपान में इसप्रकार लिखा है कि...
जुड़ते नयना है वारि वारि, म्हारा सांवरिया...
श्याम रंगीला जी... श्याम रंगीला जी...
!! जय जय लखदातार की !!
!! जय जय खाटू नरेश की !!
!! जय जय लीले के असवार की !!
!! जय जय मोरवीनंदन श्री श्याम की !!
उपरोक्त भाव में एक शब्द "ढूंढा री धरती" आया है... कहा जाता है, यह वही दग्ध स्थल है, जहा ढूंढा जलकर भस्म हुई थी, ढूंढा दानवराज हिरण्यकश्यप की बहन होली को ही कहते है... और मान्यता के अनुसार यह वही क्षेत्र है जहाँ, उसने देवताओं से प्राप्त अग्नि में न जलने के वरदान से भक्त प्रहलाद को अग्नि में जलाकर भष्म करने की कोशिश कि, परन्तु श्री हरि के भक्त को कौन मार पाया है... अंतत:, दुष्टा ढूंढा (होली) अपने वरदान के गलत प्रयोग करने के कारण स्वयं ही अग्नि में जलकर भष्म हो गयी...
और इसी घटना के प्रतिक में आज तक हम लोग ढूंढा पूजन कर उसे दहते है... और तब से यह क्षेत्र ढूंढारी कहलाने लगा, इसी क्षेत्र में खट्वा नाम की नगरी थी... जहा बाबा श्याम का शीश पवित्र श्याम कुण्ड से प्रकट हुआ था, और अब यह खट्वा नगरी बाबा श्याम की कृपा से, खाटू श्याम जी के नाम से जानी जाती है...
श्री श्याम बाबा की स्तुति में भी "ढूंढा" का नाम आता है...
"धन्य ढूंढारो देश है, खाटू नगर सुजान...
अनुपम छवि श्री श्याम की, दर्शन से कल्याण..."
नई दिल्ली के परम श्याम भक्त श्री श्री विश्वनाथ जी "वशिष्ठ " जी ने इस क्षेत्र की महिमा का गुणगान करते हुए "श्री श्याम चरित्र" के अष्टम सौपान में इसप्रकार लिखा है कि...
दग्ध स्थल ही है ढूंढारी, ढूंढा जहाँ गई थी मारी...
ढूंढा को ही होली कहते, है प्रतिक में होली दहते...
ढूंढा को ही होली कहते, है प्रतिक में होली दहते...
भक्त प्रहलाद को मारण ताई, हिरणाकुश ने ढूंढा बुलाई...
ढूंढा आग से डरती नहीं थी, कभी आग से जलती नहीं थी...
ढूंढा आग से डरती नहीं थी, कभी आग से जलती नहीं थी...
भक्त प्रह्लाद था भक्ति करता, हिरणाकुश इसलिए था चिढता...
नहीं माना तो ढूंढा बुलाई, बिठा गोद में आग लगाईं...
नहीं माना तो ढूंढा बुलाई, बिठा गोद में आग लगाईं...
जल गई वो प्रह्लाद बचा था, भक्त हरि का वो सच्चा था...
वो वरदान ही श्राप हो गया, दुष्टा को यूँ ताप मिल गया...
वो वरदान ही श्राप हो गया, दुष्टा को यूँ ताप मिल गया...
जब से ढूंढा गई थी मारी, क्षेत्र यह तब से हुआ ढूंढारी ...
!! तब से दग्ध स्थल हुआ, ढूंढारी प्रचार !!
!! अपभ्रंश से फिर हुआ, क्षेत्र यही ढूंढार !!
!! अपभ्रंश से फिर हुआ, क्षेत्र यही ढूंढार !!
क्षेत्र ढूंढार में खटवा नगरी, सुखी संतोषी प्रजा थी सगरी...
कालांतर की खटवा नगरी, अब कहलाती खाटू नगरी...
कालांतर की खटवा नगरी, अब कहलाती खाटू नगरी...
नगर यही अब धाम हुआ है, गाँव ये खाटू श्याम हुआ है...
जग में श्याम की ज्योति चमके, श्यामदेव की महिमा महके...
जग में श्याम की ज्योति चमके, श्यामदेव की महिमा महके...
देश-देश के सब जन आते, जात जडुला धोक लगाते...
हर दिन मेला सा रहता है, खाटू धाम भरा रहता है...
हर दिन मेला सा रहता है, खाटू धाम भरा रहता है...
मनोकामना सब लाते है, पूरण श्याम सभी करते है...
श्याम निशान सदा चढ़ते है, भक्त भाव से नित लाते है...
श्याम निशान सदा चढ़ते है, भक्त भाव से नित लाते है...
नर नारी बालक सब आते, दर्शन श्याम धणी का पाते...
सभी श्याम को धोक लगते, मगन होय कर शीश नवाते...
सभी श्याम को धोक लगते, मगन होय कर शीश नवाते...
श्याम सदा भक्तन हितकारी, जहाँ प्रेम वह श्याम बिहारी...
मोरवी लाल बड़ा बलकारी, कलयुग का है भव भयहारी...
!! नर-नारी में राम गया, वहां श्याम नाम !!
मोरवी लाल बड़ा बलकारी, कलयुग का है भव भयहारी...
!! नर-नारी में राम गया, वहां श्याम नाम !!
!! मरुधर में प्रसिद्ध हुआ वहाँ श्याम का धाम !!
!! जय जय लखदातार की !!
!! जय जय खाटू नरेश की !!
!! जय जय लीले के असवार की !!
!! जय जय मोरवीनंदन श्री श्याम की !!
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थे भी एक बार श्याम बाबा जी रो जयकारो प्रेम सुं लगाओ...
!! श्यामधणी सरकार की जय !!
!! शीश के दानी की जय !!
!! खाटू नरेश की जय !!
!! लखदातार की जय !!
!! हारे के सहारे की जय !!
!! लीले के असवार की जय !!
!! श्री मोरवीनंदन श्यामजी की जय !!