/\/\/\/\/\/\/\/\/\/\/\/\/\!! श्री गणेशाय नमः !!/\/\/\/\/\!! ૐ श्री श्याम देवाय नमः !!\/\/\/\/\!! श्री हनुमते नमः !!/\/\/\/\/\/\/\/\/\/\/\/\/\/\

Saturday 27 November 2010

!! "ढूंढा री धरती" ऊपर, म्हारा श्यामधणी पधारया जी... !!





कितना धन्य है यह पावन "ढूंढा रो देश", जहाँ की खाटू नगरी में माता मोरवी के लाल प्यारे श्याम सरकार साक्षात् देव स्वरुप में विराजित है... आइये ऐसे साँवरी, सलोनी सूरत वाले बाबा श्याम के श्री विग्रह को इन नयनो से निहारते हुए, ये भावपूरित श्रद्धा सुमन उनके श्री चरणों में अर्पित करते है...



धन्य धन्य ह ढूंढा रो देश, जांकी महिमा अपरम्पार...
बन्यो ऐसो सुन्दर धाम, जिसने जाने सब संसार...
खाटू नगरी म विराजे, ओ खाटू नगरी म विराजे..
म्हारो श्याम सरकार...



माता मोरवी को लाल, लील घोड़े पे असवार...
इन री हो रही जय जयकार, इन रो नाम ह लखदातार...
खाटू नगरी म विराजे, ओ खाटू नगरी म विराजे...
म्हारो श्याम सरकार...



भक्तां ले करके निशान, जावे श्यामधणी के द्वार...
इनकी एक नजर हो जावे तो, भक्तां रो बेड़ो पार...
खाटू नगरी म विराजे, ओ खाटू नगरी म विराजे...
म्हारो श्याम सरकार...



आवे जब यो कातिक मास, उमड़े मन आनंद अपार...
चालां चालां खाटू धाम, देखा जन्मोत्सव री बहार..
खाटू नगरी म विराजे, ओ खाटू नगरी म विराजे...
म्हारो श्याम सरकार...



म्हारा श्यामधणी रो रूप, लेज्यो नयना स निहार...
देवे श्याम धणी तो पल म उन रा, सारा कष्ट निवार...
खाटू नगरी म विराजे, ओ खाटू नगरी म विराजे...
म्हारो श्याम सरकार...



धन्य धन्य ह ढूंढा रो देश, जांकी महिमा अपरम्पार...
बन्यो ऐसो सुन्दर धाम, जिसने जाने सब संसार...
खाटू नगरी म विराजे, ओ खाटू नगरी म विराजे...
म्हारो श्याम सरकार...



!! साँवरी सलोनी सूरत वाले बाबा श्याम की जय हो !!
!! माता मोरवी के लाल बाबा श्याम की जय हो !!
!! लीले घोड़े के असवार बाबा श्याम की जय हो !!




उपरोक्त भाव में एक शब्द "ढूंढा रो देश" आया है... कहा जाता है, यह वही दग्ध स्थल है, जहा ढूंढा जलकर भस्म हुई थी, ढूंढा दानवराज हिरण्यकश्यप की बहन होली को ही कहते है... और मान्यता के अनुसार यह वही क्षेत्र है जहाँ, उसने देवताओं से प्राप्त अग्नि में न जलने के वरदान से भक्त प्रहलाद को अग्नि में जलाकर भष्म करने की कोशिश कि, परन्तु श्री हरि के भक्त को कौन मार पाया है... अंतत:, दुष्टा ढूंढा (होली) अपने वरदान के गलत प्रयोग करने के कारण स्वयं ही अग्नि में जलकर भष्म हो गयी...


और इसी घटना के प्रतिक में आज तक हम लोग ढूंढा पूजन कर उसे दहते है... और तब से यह क्षेत्र ढूंढारी कहलाने लगा, इसी क्षेत्र में खट्वा नाम की नगरी थी... जहा बाबा श्याम का शीश पवित्र श्याम कुण्ड से प्रकट हुआ था, और अब यह खट्वा नगरी बाबा श्याम की कृपा से, खाटू श्याम जी के नाम से जानी जाती है...


श्री श्याम बाबा की स्तुति में भी "ढूंढा रो देश" का नाम आता है...


"धन्य ढूंढा रो देश है, खाटू नगर सुजान...
अनुपम छवि श्री श्याम की, दर्शन से कल्याण..."


नई दिल्ली के परम श्याम भक्त श्री श्री विश्वनाथ जी "वशिष्ठ " जी ने इस क्षेत्र की महिमा का गुणगान करते हुए "श्री श्याम चरित्र" के अष्टम सौपान में इसप्रकार लिखा है कि...




दग्ध स्थल ही है ढूंढारी, ढूंढा जहाँ गई थी मारी...
ढूंढा को ही होली कहते, है प्रतिक में होली दहते...


भक्त प्रहलाद को मारण ताई, हिरणाकुश ने ढूंढा बुलाई...
ढूंढा आग से डरती नहीं थी, कभी आग से जलती नहीं थी...


भक्त प्रह्लाद था भक्ति करता, हिरणाकुश इसलिए था चिढता...
नहीं माना तो ढूंढा बुलाई, बिठा गोद में आग लगाईं...


जल गई वो प्रह्लाद बचा था, भक्त हरि का वो सच्चा था...
वो वरदान ही श्राप हो गया, दुष्टा को यूँ ताप मिल गया...
जब से ढूंढा गई थी मारी, क्षेत्र यह तब से हुआ ढूंढारी ...


!! तब से दग्ध स्थल हुआ, ढूंढारी प्रचार !!
!! अपभ्रंश से फिर हुआ, क्षेत्र यही ढूंढार !!


क्षेत्र ढूंढार में खटवा नगरी, सुखी संतोषी प्रजा थी सगरी...
कालांतर की खटवा नगरी, अब कहलाती खाटू नगरी...


नगर यही अब धाम हुआ है, गाँव ये खाटू श्याम हुआ है...
जग में श्याम की ज्योति चमके, श्यामदेव की महिमा महके...


देश-देश के सब जन आते, जात जडुला धोक लगाते...
हर दिन मेला सा रहता है, खाटू धाम भरा रहता है...


मनोकामना सब लाते है, पूरण श्याम सभी करते है...
श्याम निशान सदा चढ़ते है, भक्त भाव से नित लाते है...


नर नारी बालक सब आते, दर्शन श्याम धणी का पाते...
सभी श्याम को धोक लगते, मगन होय कर शीश नवाते...


श्याम सदा भक्तन हितकारी, जहाँ प्रेम वह श्याम बिहारी...
मोरवी लाल बड़ा बलकारी, कलयुग का है भव भयहारी...


!! नर-नारी में राम गया, वहां श्याम नाम !!
!! मरुधर में प्रसिद्ध हुआ वहाँ श्याम का धाम !!




 !! जय जय लखदातार की !!
 !! जय जय खाटू नरेश की !!
     !! जय जय लीले के असवार की !!
     !! जय जय मोरवीनंदन श्री श्याम की !!


टिप्पणियाँ


Mukesh K Agrawal
म्हारा श्यामधणी रो रूप, लेज्यो  नयना स  निहार...
देवे श्याम धणी तो पल म उन रा, सारा कष्ट निवार...
खाटू नगरी म विराजे, ओ  खाटू नगरी म विराजे...
म्हारो श्याम  सरकार...

!! साँवरी सलोनी सूरत  वाले बाबा श्याम की जय  हो !!
!! माता मोरवी  के लाल बाबा श्याम की जय  हो !!
!! लीले घोड़े के असवार बाबा श्याम की जय हो !!

November 9 at 9:53pm
 

Prem Prakash Sharma

jai morwinandan shyam baba ki

November 9 at 10:28pm


Elena Kireeva

जय श्री कृष्ण! सुंदर!

November 10 at 10:21pm
Naveen Agarwal

JAI SHREE KHATU NARESH SHYAM BABA KI JAI...

November 10 at 10:24pm


Radhe Saraf

jai sri shyam

Khatu naresh ki jai


November 10 at 11:00pm

Rohan Shanti Shukla

भक्तां ले करके निशान, जावे  श्यामधणी के द्वार...
इनकी एक नजर हो जावे तो, भक्तां रो  बेड़ो पार...
खाटू नगरी म विराजे, ओ  खाटू नगरी म विराजे...
म्हारो श्याम सरकार...

November 10 at 11:46pm


Mahabir Saraf

कब् होगा मिलन हमारा,कब् होगा दरश तुम्हारा
नयनों मे छबि तुम्हारी ,सांसों मे नाम  तुम्हारा

November 11 at 12:39am
Mahabir Saraf

जय हो तुम्हारी जय  हो तुम्हारी, मोर्वीनंदन  श्यामबिहारी 
कलयुग  अवतारी भय भवहारी , जय  हो तुम्हारी  जय हो तुम्हारी

November 11 at 2:17am


प्रेम से बोलो, जय बाबा की । 
सारे बोलो, जय बाबा की ।
भक्तो के प्यारे, बाबा श्री  श्याम ।
भक्त पुकारेँ, जय  श्री श्याम ।

भक्तो के दिल मेँ बसे,  खाटू वाले  श्री श्याम बाबा ।
जय जय खाटू  वाले श्री  श्याम बाबा  आप की जय हो
November 11 at 6:21am

Ankit Sonthalia

tumhari sharan milgayi savare tumhari kasam zindagi mil gayai, hume dekhnewala koi na tha tum jo mile
bandagi mil gayai

November 11 at 7:30am
Mahabir Saraf

सुबह हो या शाम  बोलो जय मोर्विनंदन जय श्री श्याम

November 11 at 2:26pm

 


Susheel Goel


प्रेम से बोलो, जय बाबा की ।
सारे बोलो, जय बाबा की ।
भक्तो के प्यारे, बाबा श्री श्याम ।
भक्त पुकारेँ, जय श्री श्याम ।

भक्तो के दिल मेँ बसे,  खाटू वाले  श्री श्याम बाबा ।
जय जय खाटू वाले श्री  श्याम बाबा आप की जय हो  ।।

November 11 at 2:27pm


Mahabir Saraf

घटोत्कच-मोरविनंदन खाटू का श्याम  बिहारी
भीम पौत्र बलकारी, कलयुग का भव भयहारी

बोलो जय मोरविनंदन, बोलो जय जय श्याम मुरारी

November 11 at 2:40pm

Seshmal Jain

Morwinandan ya Ahilavatinandan hai ka Shyam bolna galat hove.
Babo tho Shri Krishna vardani hai - khatu gram mai pragat hue
Shyam Baba bola bhaiji.

November 11 at 5:18pm
Gyarsilal Bagaria
lekin jo satya hai woh to satya hi rahega !!! Jay Sri Shyam !!!

November 11 at 5:24pm

Seshmal Jain

kke sacho hoye bhaiji

November 11 at 5:29pm
Mukesh K Agrawal

श्याम बाबा जी रो जयकारो  श्याम बाबा  जी री माता रो नाम का  साथ लेवन सा  कोई गलत  नहीं है, भाई  जी... थे भी एक बार बाबा जी  रो जयकारो  प्रेम स  लगाओ...

!! खाटू नरेश की जय !! 
!! शीश के दानी की जय !!
!! लीले के असवार की जय !!
!! श्री  मोरवीनंदन  बाबा श्याम  की जय !!

Gyarsilal Bagaria

Shyam hi sacho nam hai sab se sacho Shyam ko kam jisne diya sheesh ka dan !!!

November 11 at 5:39pm ·
Seshmal Jain

Bhaiji Babo manne maaf karno, par ye manne koni bhave
Shyam Babo to Krishna vardaani hove ya Khatu gram mae pragat huvo - maata tho do hove Morwi aur Ahilavati naag raj kumari.

November 11 at 5:43pm
Seshmal Jain

thee sachi bola Gyarsilala bhaiji

November 11 at 5:45pm
Mukesh K Agrawal

श्री शेषमल जी, श्री मोरवी नंदन बाबा श्याम जी रा ग्रुप  म थारो  स्वागत ह  भाई जी, थे  अपना अमूल्य सुझाव ग्रुप का डिसकसन  बोर्ड म भी  लिख सको हो ... लिंक नीचे  दीयेरी ह... 


!! साँवरी सलोनी सूरत वाले...  बाबा श्याम की जय हो !!
!! माता मोरवी  के लाल बाबा श्याम की जय  हो !!
!! लीले घोड़े के असवार  बाबा श्याम की जय हो !!

November  11 at 5:48pm

Susheel Goel

Bhaiji manne jo kooni bhave ye apke hi  jaano, Babo ki maata ka naam baata ka tte galati karoha, Babo manne samma kariyo.

November 11 at 5:52pm

Mukesh K Agrawal


भाई सुशील गोयल जी... कमेन्ट के लिए, बहुत  बहुत धन्यवाद...

आश्चर्य लगा यह देख  कर आप अभी भी यह सोचते है,  शास्त्र  सम्मत बाबा  श्याम की माता का नाम बताकर मैं गलत कर रहा हूँ, जबकि  आपने स्वयं  " Shri Khatu Shyam Ji" के info में उनके पिता का  म
घटोत्कच (जिनका  विवाह माता कामकंटकटा से हुआ था [जिन्हें माता मोरवी भी कहते है] लिखा है...

आपने info में यह लिखा है... 

"खाटू में भीम के पौत्र और  घटोत्कच के  पुत्र बर्बरीक की  पूजा श्याम  के रूप में की जाती है। ऐसी मान्यता है कि महाभारत युद्ध के समय भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया था कि कलयुग में  उसकी पूजा श्याम (कृष्ण स्वरूप) के नाम से होगी। खाटू में श्याम के मस्तक स्वरूप की पूजा होती है, जबकि निकट ही स्थित रींगस में धड़ स्वरूप की पूजा की जाती है।"

अब अप यह  बताये में किस प्रकार  से उनकी माता का नाम लिख कर गलत कर रहा हूँ, जो नाम आपको भी स्वीकार्य है...

खैर मुझे आपके स्वयं   मत से किसी भी प्रकार का भेद नहीं है.. आप जिसे  चाहे उन्हें उनकी माता माने...

परन्तु, आपसे विनम्र अनुग्रह है, कृपा कर  किसी भी भाव एवं फोटो  में इस  प्रकार कर संभाषण न करे, इससे भावो के  रसास्वादन में  भक्तवृंदो को व्यवधान उत्पन्न हो सकता है... किसी भी प्रकार के
संभाषण के  लिए, आप नीचे  दिए गए डिसकसन  बोर्ड के लिंक पर अपने सुझाव लिख सकते है...

http://www.facebook.com/to
pic.php?uid=16603551007463
0&topic=177


!! जय जय बोलो शीश के दानी बाबा श्याम की !!
!! जय जय बोलो मात मोरवी रा लाल श्यामधणी की !!
!! जय जय बोलो तीन बाण धारी, लीले रे असवार की !! 


November 11 at 6:32pm ·


Susheel Goel

we are not against story but we against as making comments "Jai Morwinandan Shri Shyam"

November 11 at 6:35pm 
Mukesh K Agrawal

कृपा कर आप "जय मोरवीनंदन  जय श्री श्याम" को  सिर्फ एक  कमेन्ट के  रूप में न  देखे.... यह तो उन श्याम भक्तों का  ह्रदय से निकला हुआ  प्रेम  पूर्वक एवं  प्रेम भाव  से पूरित जयकारा है, जिसके प्रत्येक अक्षर के साथ उनकी  परम आस्था जुड़ी हुई है...

अगर आप इस ...जयकारे के विरोध में है, तो यह  आपकी अपनी  व्यक्तिगत  सोच है... कृपा कर यहाँ पर श्याम प्रेम में उन्मक्त माहौल को इन विचारो से दूषित न करे... 

एक बार पुनः धन्यवाद, भाई सुशील  गोयल जी

!! जय जय बोलो शीश के दानी बाबा श्याम की !!
!! जय जय बोलो मात मोरवी रा लाल श्यामधणी की !!
!! जय जय बोलो तीन बाण धारी, लीले रे असवार की !! 
 

November 11 at 6:45pm
Susheel Goel

Mukeshji plz ......

November 11 at 6:49pm

Mukesh K Agrawal

‎!! जय श्री श्याम  प्यारे की !! 

November 11 at 6:51pm

Radhe Saraf

shyam ek hai ek hi hai aur ek hi rahenge. Chahe mandir ban jaye lakh bhakat ho jaye carore humara shyam shyam hi rahega.

Jai sri shyam
Khatu naresh ki jai.

November 11 at 7:11pm

Mahabir Saraf

श्री राधेश्यामजी,  आपने सच कहा है की श्री  श्याम एक है  और एक ही रहेंगे और  भक्तों के  प्यारे खाटूवाले श्याम  घटोत्कच-कामकंटकटा  के पुत्र है और उनके ही  पुत्र  कहलायेंगे|  कामकंटकटा जो दैत्यराज मूर की लड़की थी इसीलिए  उन्हें  मोर्वी भी कहते थे और हम अगर बाबा श्याम को मोर्वीनंदन कहे तो माता मोर्वी को  सम्मान देते है ; आप और सब श्री श्याम भक्त भी माता को सम्मान देना चाहेंगे और एक भ्रम और दुर हो जाएगा कि यशोदानंद या देवकीनन्द श्याम श्री कृष्ण कन्हिया  श्याम है जिन्होंने  अपने अनेको नामों में से एक नाम "श्याम" से श्री बर्बरीकजी को अलंकृत किया था | आप से सादर अनुरोध है  कि आप डिसकसन  बोर्ड में  हुए  डिस्कसन को पढेंगे तो आपका मन गंगा जल की तरह पवित्र  हो जाएगा |आईये  हम सभी श्री श्याम प्रभु के श्री चरणों में नतमस्तक हो कर भजन सुमन अर्पित करें :

घटोत्कच-मोरविनंदन खाटू का श्याम बिहारी
भीम पौत्र बलकारी, कलयुग का भव भयहारी

बोलो जय मोरविनंदन,बोलो जय जय श्याम  मुरारी
जय हो तुम्हारी, जय हो तुम्हारी, मोर्वीनंदन श्याम बिहारी
कलयुग अवतारी भक्तों के हितकारी ,जय  हो तुम्हारी....
 

आपका स्वागत है 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र" ग्रुप में 

जय मोरवीनंदन  जय श्री श्याम

November 11 at 8:18pm

Prakash Raj Saraf

!!!۞!!! जय जय मोरवी नन्दन जय  श्री श्याम !!!۞!!!

Wednesday 24 November 2010

!! धन्य मोरवी मात तू, सुत तेरा देव हुआ... !!




श्रीमद भागवत गीता के मतानुसार जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब भगवान् साकार रूप धारण कर दीन भक्तजन, साधु एवं सज्जन पुरुषों का उद्धार तथा पाप कर्म में प्रवृत रहने वालो का विनाश कर सधर्म की स्थापन किया करते है... उनके अवतार ग्रहण का न तो कोई निश्चित समय होता है और न ही कोई निश्चित रूप... धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि को देखकर जिस समय वे अपना प्रगट होना आवश्यक समझते है, तभी प्रगट हो जाते है...


ऐसे कृपालु भगवान के पास अपने अनन्य भक्त के लिए कुछ भी अदेय नहीं होता... परन्तु सच्चा भक्त कोई विरला ही मिलता है... यद्यपि उस सच्चिदानंद भगवान के भक्तो की विभिन्न कोटिया होती है, परन्तु जो प्राणी संसार, शरीर तथा अपने आपको सर्वथा भूलकर अनन्य भाव से नित्य निरंतर केवल श्री भगवान में स्थिर रहकर हेतुरहित एवं अविरल प्रेम करता है, वही श्री भगवान को सर्वदा प्रिय होता है...


श्री स्कन्दपुराण के रचियता "ऋषि वेदव्यास जी" के अनुसार श्री भगवान के भक्तो की इसी कोटि में पाण्डव कुलभूषण श्री भीमसेन के पोत्र एवं महाबली घटोत्कच के पुत्र, मोरवीनंदन वीर शिरोमणि श्री बर्बरीक भी आते है... महाभारत के युद्ध में उपस्थित होकर वीर बर्बरीक ने अपने एक ही बाण से समस्त वीरो को आश्चर्य में डाल दिया... एवं अपनी विमल भक्ति से उन्होंने भगवान् श्री कृष्ण को भी मुग्ध कर दिया... उनके इसी अद्भुत वीरता पर प्रसन्न होकर भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें कलियुग में देव रूप में पूजित होकर भक्तों की मनोकामनाओ को पूर्ण करने का वरदान दिया...  एवं योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक के शीश को रणभूमि में प्रकट हुई १४ देवियों ( सिद्ध, अम्बिका, कपाली, तारा, भानेश्वरी, चर्ची, एकबीरा, भूताम्बिका, सिद्धि, त्रेपुरा, चंडी, योगेश्वरी, त्रिलोकी, जेत्रा) के द्वारा अमृत से सिंचित करवा कर  देवत्व प्रदान करके अजर अमर कर दिया...


तत्सतथेती तं प्राह केशवो देवसंसदि !
शिरस्ते पूजयिषयन्ति देव्याः पूज्यो भविष्यसि !!
( स्कन्दपुराण, कौ. ख. ६६.६५)


भावार्थ : "उस समय देवताओं की साधारण सभा में श्री कृष्ण ने कहा - हे वीर! ठीक है, तुम्हारे शीश की पूजा होगी, और तुम देव रूप में पूजित होकर प्रसिद्धि पाओगे..."


इत्युक्ते चण्डिका देवी तदा भक्त शिरस्तिव्दम !
अभ्युक्ष्य सुधया शीघ्र मजरं चामरं व्याधात !!

यथा राहू शिरस्त्द्वत तच्छिरः प्रणामम तान !
उवाच च दिदृक्षामि तदनुमन्यताम !! ( स्कन्दपुराण, कौ. ख. ६६.७१,७२)



भावार्थ :  "ऐसा कहने के बाद चण्डिका देवी ने उस भक्त ( श्री वीर बर्बरीक) के शीश को जल्दी से अमृत से अभ्युक्ष्य (छिड़क) कर राहू के शीश की तरह अजर और अमर बना दिया... और इस नविन जाग्रत शीश ने उन सबको प्रणाम किया... और कहा कि, "मैं युद्ध देखना चाहता हूँ, आप लोग इसकी स्वीकृति दीजिए..."



ततः कृष्णो वच: प्राह मेघगम्भीरवाक् प्रभु: !
यावन्मही स नक्षत्र याव्च्चंद्रदिवाकरौ !
तावत्वं सर्वलोकानां वत्स! पूज्यो भविष्यसि !! ( स्कन्दपुराण, कौ. ख.  ६६.७३,७४)



भावार्थ :  तब मेघ के समान गम्भीरभाषी प्रभु श्री कृष्ण ने कहा : " हे वत्स ! जब तक यह पृथ्वी नक्षत्र सहित है, और जब तक सूर्य चन्द्रमा है,तब तक तुम सब लोगो के लिए पूजनीय होओगे...


देवी लोकेषु सर्वेषु देवी वद विचरिष्यसि !
स्वभक्तानां च लोकेषु देवीनां दास्यसे स्थितिम !!  ( स्कन्दपुराण, कौ. ख. ६६.७५,७६)



भावार्थ :  "तुम सैदव देवियों के स्थानों में देवियों के समान विचरते रहोगे...और अपने भक्तगणों के समुदाय में कुल देवियो की मर्यादा जैसी है, वैसी ही बनाई रखोगे..."


बालानां ये भविष्यन्ति वातपित्त क्फोद्बवा:  !
पिटकास्ता: सूखेनैव शमयिष्यसि पूजनात !!  ( स्कन्दपुराण, कौ. ख. ६६.७७ )



भावार्थ : "तुम्हारे बालरुपी भक्तों के जो वात पित्त कफ से पिटक रोग होंगे, उनको पूजा पाकर बड़ी सरलता से मिटाओगे..."


इदं च श्रृंग मारुह्य पश्य युद्धं यथा भवेत !
इत्युक्ते वासुदेवन देव्योथाम्बरमा विशन !!  ( स्कन्दपुराण, कौ. ख. ६६.
७८ )


भावार्थ : "और इस पर्वत की चोटी पर चढ़कर जैसे युद्ध होता है, उसे देखो... इस भांति वासुदेव श्री कृष्ण के कहने पर सब देवियाँ आकाश में अन्तर्धान कर गई..."



बर्बरीक शिरश्चैव गिरीश्रृंगमबाप तत् !
देहस्य भूमि संस्काराश्चाभवशिरसो नहि !
ततो युद्धं म्हाद्भुत कुरु पाण्डव सेनयो: !!  ( स्कन्दपुराण, कौ. ख. ६६.७९,८०)


भावार्थ : "बर्बरीक जी का शीश पर्वत की चोटी पर पहुँच गया एवं बर्बरीक जी के धड़ को शास्त्रीय विधि से अंतिम संस्कार कर दिया गया पर शीश की नहीं किया गया ( क्योकि शीश देव रूप में परिणत हो गया था)... उसके वाद कौरव और पाण्डव सेना में भयंकर युद्ध हुआ..."


महाभारत का युद्ध समाप्ति पर महाबली श्री भीमसेन को यह अभिमान हो गया कि, यह महाभारत का युद्ध केवल उनके पराक्रम से जीता गया है, तब श्री अर्जुन ने कहा कि, वीर बर्बरीक के शीश से पूछा जाये की उसने इस युद्ध में किसका पराक्रम देखा है.... तब वीर बर्बरीक के शीश ने महाबली श्री भीमसेन का मान मर्दन करते हुए उत्तर दिया की यह युद्ध केवल भगवान श्री कृष्ण की निति के कारण जीता गया.... और इस युद्ध में केवल भगवान श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र चलता था, अन्यत्र कुछ भी नहीं था... वीर बर्बरीक के द्वारा ऐसा कहते ही समस्त नभ मंडल उद्भाषित हो उठा... एवं उस देव स्वरुप शीश पर पुष्प की वर्षा होने लगी... देवताओं की दुदुम्भिया बज उठी... तत्पश्चात भगवान श्री कृष्ण ने पुनः वीर बर्बरीक के शीश को प्रणाम करते हुए कहा - "हे वीर बर्बरीक आप कलिकाल में सर्वत्र पूजित होकर अपने सभी भक्तो के अभीष्ट कार्य को पूर्ण करोगे... अतएव आपको इस क्षेत्र का त्याग नहीं करना चाहिये, हम लोगो से जो भी अपराध हो गए हो, उन्हें कृपा कर क्षमा कीजिये"


इतना सुनते ही पाण्डव सेना में हर्ष की लहर दौड गयी... सैनिको ने पवित्र तीर्थो के जल से शीश को पुनः सिंचित किया और अपनी विजय ध्वजाएँ शीश के समीप फहराई... इस दिन सभी ने महाभारत का विजय पर्व धूमधाम से मनाया...




नई दिल्ली के परम श्याम भक्त श्री श्री विश्वनाथ "वशिष्ठ" जी ने स्कन्दपुराण में वर्णित वीर बर्बरीक जी के देवियों द्वारा शीश के अमृत सींचन की इस ह्रदयस्पर्शी आलौकिक लीला को काव्य रूप में "श्री श्याम चरित्र" के छठे सौपान में निम्नलिखित पंक्तियों के द्वारा अनुपम भावपूरित शब्दों में इस प्रकार चित्रित किया है...



श्याम सदा भक्तन हितकारी, जहाँ प्रेम वहाँ श्याम बिहारी...
मोरवी लाल बड़ा बलकारी, कलयुग का है भव भयहारी...



सिद्ध अम्बिका-कपाली-तारा, भानेश्वरी चर्ची एकबीरा...
भूताम्बिका सिद्धि त्रेपुरा, चंडी-योगेश्वरी-त्रिलोकीजेत्रा...



सुवर्णा और क्रोड़इ माता, शक्तिपूरक चौदह दाता...
कहने लगी सब एक ही स्वर में, स्थिर हो सब वो, स्थित अधर में...



हे! श्री कृष्ण ये भक्त तुम्हारा, सेवक ये हम सबको प्यारा...
जो आदेश हो हमें दीजिये, भक्त काज सब पूर्ण कीजिये...



भक्त मुझे यह प्राण से प्यारा, लगा ह्रदय से शीश सम्हाला...
सुनो देवियों अमृत लाओ, सींचन अमृत शीश कराओ...



अजर अमर यह शीश हो जाए, मेरी आपकी कीर्ति बढ़ाये...
तुरंत ही अमृत लायी देवियाँ, शीश का सींचन करे देवियाँ...



देखे मोहन दिव्य दृष्टि से, हंसा शीश लौटा सृष्टि से...
हर्षित भये है, सभी उपस्थित, देखा शीश सजीव अचम्भित...



!! अमृत सिंचित शीश का, नाम है श्याम हुआ !!
!! धन्य मोरवी मात तू, सुत तेरा देव हुआ !!



देव धरा के सबसे न्यारे, श्याम रूप में लगते प्यारे...
सूर्य, धरा, नभ और यह वायु, इससे भी ज्यादा हो तेरी आयु...



कभी नहीं था और न होगा, तुमसा कोई भी अतुलित जोधा...
जप और तप में श्रेष्ठ हुआ तू, दानवीर अति ज्येष्ठ हुआ तू...


भक्त ह्रदय में वास करो तुम, सब दुखियों के कष्ट हरो तुम...
हारे का तुम ही हो सहारा, जिसपे दया तेरी वो नहीं हारा...



सब लोको में विचरण करना, भक्तों का तुम हार दुःख हरना...
जो भी तुमको शीश नवाये, पल में उसकी करो सहाये...


तेरे द्वार से खाली न जाये, रोता आये तो हंसता जाये...
बाल रूप के वात, पिकट, कफ, तुरंत मिटाना ऐसे कष्ट सब...


दया,  शांति,  बुद्धि,  तुष्टि,  मेघा,  मैत्री,  श्रद्धा,  पुष्टि...
यह सब देना भक्तजनन को, चहुँ दिशा में तेरा मनन हो...


कलयुग में तेरी बढेगी ख्याति, शीश नवाएगी हर जाति...
जो भी श्याम नाम तेरा जपेगा, पाप ताप से मुक्त रहेगा...



महाभारत होगा बड़ा भारी, तुम्ही करोगे इसे निहारी...
शीश गिरि पे स्थापित कीन्हा, पुनः कृष्ण ने आशीष दीन्हा...


रहो श्याम यहाँ समर निहारो, कर निर्णय हरि भार उतारो...
अंतर्ध्यान हुई है देवी, सभी निज धाम गई है...


सभी कृष्ण संग वापस आये, निश्छल धड़ अवशेष उठाये...
शास्त्र विधि और स सम्मान से, काज किया अंतिम विधान से...


श्याम सदा भक्तन हितकारी, जहाँ प्रेम वहाँ श्याम बिहारी...
मोरवी लाल बड़ा बलकारी, कलयुग का है भव भयहारी...



!! धर्म युद्ध का फैसला, धर्म से तू ही करे !!
!! दृष्टि तेरी दिव्य है, जो यह काज करे !!


!! पाण्डव कुल का पुत्र वो, पूर्ण देव हुआ आज !!
!! जब तक धरती सूर्य है, करे वो तब तक राज !!


("श्री श्याम चरित्र" के षष्ठम सौपान से उद्धृत)




यही श्री बर्बरीक जी का शीश कलियुग में राजस्थान के "खाटू" नामक पवित्र नगरी में "श्याम कुण्ड" में से श्री श्याम जी का नाम धारण कर प्रगट हुए...

आइये हम सभी मिल श्री श्याम प्रभु की पावन आरती गाये... 





ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे...
खाटू धाम विराजत, अनुपम रुप धरे...
ॐ जय श्री श्याम हरे...


रत्न जड़ित सिंहासन, सिर पर चंवर ढुले...
तन केशरिया बागों, कुण्डल श्रवण पड़े...
ॐ जय श्री श्याम हरे...


गल पुष्पों की माला, सिर पर मुकुट धरे...
खेवत धूप अग्नि पर, दीपक ज्योती जले...
ॐ जय श्री श्याम हरे...


मोदक खीर चुरमा, सुवरण थाल भरें...
सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करें...
ॐ जय श्री श्याम हरे...


झांझ कटोरा और घडियावल, शंख मृंदग धरे...
भक्त आरती गावे, जय जयकार करें...
ॐ जय श्री श्याम हरे...


जो ध्यावे फल पावे, सब दुःख से उबरे...
'जयदयाल" निज मुख से, श्री श्याम श्याम उचरें...
ॐ जय श्री श्याम हरे...


श्री श्याम बिहारी जी की आरती जो कोई नर गावे...
कहत आलुसिंह स्वामी मनवांछित फल पावें...
ॐ जय श्री श्याम हरे...


ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे...
निज भक्तों के तुम ने पूर्ण काज करें...
ॐ जय श्री श्याम हरे...


ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे...
खाटू धाम विराजत, अनुपम रुप धरे...
ॐ जय श्री श्याम हरे...
 



!! जय जय बोलो शीश के दानी मोरवीनंदन वीर बर्बरीक की !!
!! जय जय बोलो कलयुग अवतारी बाबा श्यामधणी की !!
!! जय जय बोलो लीले के असवार, लखदातार की !!
!! जय जय बोलो मोरवीनंदन खाटू श्याम जी की !!


निकट भविष्य में मेरा प्रयास यही रहेगा की आप सभी श्याम प्रेमियों के समक्ष स्कन्दपुराण के कौमारिका खंड में उक्त श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम के उज्जवल, निर्मल और सुन्दर दिव्य चरित्र को  दृष्टांतो के माध्यम से आप सभी तक पहुचाऊ...



!! जय जय मोरवी नंदन जय जय बाबा श्याम !!

Saturday 20 November 2010

!! श्री श्याम जी के निज खाटूधाम के श्री मंदिर का शिलालेख !!



उपरोक्त छवि श्री श्याम बाबा के निज धाम खाटू के श्री मंदिर में अंकित उस शिलालेख की है, जिसमे बाबा श्याम का संक्षिप्त जीवन परिचय दिया हुआ है... शिला लेख उस लेख को कहते है जो की किसी पौराणिक मंदिर, एतिहासिक स्थानों पर उस स्थान का महात्म्य एवं उससे संबंधित देव की कथा को शिला में अंकित किया जाता है, जिससे नवआगंतुकों को उस स्थान के बारे में उचित जानकारी प्राप्त हो...


यह छवि श्री महाबीर सराफ जी द्वारा गत अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी द्वादशी में उनके खाटू धाम प्रवास के दौरान ली गयी है... आप सभी भक्तवृंदो के पढ़ने की सुविधा के लिए, उपरोक्त शिलालेख में उक्त बाबा श्याम का संक्षिप्त जीवन परिचय नीचे अक्षरसः लिख रहा हूँ...


!! शीश के दानी श्री श्याम बाबा का संक्षिप्त जीवन परिचय !!


द्वापर के अंतिम चरण में हस्तिनापुर में कौरव एवम पांडव राज्य करते थे, पाण्डवों के वनवासकाल में भीम का विवाह हिडिम्बा के साथ हुआ... उसके एक पुत्र हुआ, जिसका नाम घटोत्कच रखा गया... पाण्डवों का राज्याभिषेक होने पर घटोत्कच का कामकटंकटा के साथ विवाह और उससे बर्बरीक का जन्म हुआ.. उसने भगवती जगदम्बा से अजेय होने का वरदान प्राप्त किया...


जब महाभारत युद्ध की रणभेरी बजी, तब वीर बर्बरीक युद्ध देखने की इच्छा से कुरु क्षेत्र की और प्रस्थान किया, मार्ग में विप्र रूप धारी श्री कृष्णा से साक्षात्कार हुआ.. विप्र के पूछने पर उसने अपने आप को योद्धा व दानी बताया.. परीक्षा स्वरुप उसने पेड़ के प्रत्येक पत्ते को एक ही बाण से बेंध दिया तथा श्री कृष्ण के पैर के नीचे वाले पत्ते को भी बेंधकर वह बाण वापस तरकस में चला गए... विप्र वेशधारी श्री कृष्ण के पूछने पर उसने कहा कि मैं हारने वाले पक्ष में लडूंगा..श्री कृष्ण ने कहा कि अगर तुम महादानी हो तो अपना शीश समर भूमि की बलि हेतु दान में दे दो... ततपश्चात् श्री कृष्ण के द्वारा अपना असली परिचय दिए जाने के बाद उसने महाभारत युद्ध देखने कि इच्छा प्रकट की... रात भर भजन पूजन कर प्रातः फाल्गुन शुक्ला द्वादशी को स्नान पूजा आदि करके, अपने हाथ से अपना शीश श्री कृष्ण को दान कर दिया... श्री कृष्ण ने उस शीश को युद्ध अवलोकन के लिए, एक ऊँचे स्थान पर स्थापित कर दिया...


युद्ध में विजय श्री प्राप्त होने पर पांडव विजय के श्री के सम्बन्ध में वाद-विवाद करने लगे... तब श्री कृष्ण ने कहा की इसका निर्णय बर्बरीक का शीश कर सकता है... शीश ने बताया कि युद्ध में श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र चल रहा था और द्रौपदी महाकाली के रूप में रक्त पान कर रही थी.. श्री कृष्ण ने प्रसन्न होकर शीश को वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे 'श्याम' नाम से पूजित होगे तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष कि प्राप्ति होगी... स्वप्न दर्शनोंपरांत बाबा श्याम, खाटू धाम में स्थित -श्याम कुण्ड से प्रकट होकर अपने कृष्ण विराट सालिग्राम श्री श्याम रूप में सम्वत १७७७ में निर्मित वर्तमान मंदिर में भक्तों कि मनोकामनाए पूर्ण कर रहे है...


!! बोलो नीले के असवार, शीश के दानी लखदातार, श्यामप्रभु की जय !!



जैसा की हम सभी जानते है, श्री बर्बरीक जी की माता कामकटंकटा, मूर दैत्य की पुत्री थी... पिता का नाम मूर होने से उनको "मोरवी" अर्थात "मूर की पुत्री" कहा जाता है... एवं स्कन्दपुराण में जगह जगह पर श्री मोरवीनन्दन श्री बर्बरीक जी की माता कामकटंकटा को मोरवी नाम से भी संबोधित किया गया है... स्वयं भगवन श्री कृष्ण ने श्री बर्बरीक को "मोर्व्ये" अर्थात "मोरवी के पुत्र" कह कर इस प्रकार संबोधित किया है...



श्री कृष्ण उवाच-

वत्स ! मोर्व्ये ! ब्रूहि त्वं, सर्वं प्रच्छ, यदिच्छ्सी !
यथा घटोत्क्चो मह्यं सु प्रियश्च यथा भवान !!
{ स्कन्दपुराण, कौ. ख. ६१.१४}



भावार्थ: "तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा- पुत्र मोर्व्ये ! बोलो जो बात पूछना चाहते हो, सब पूछो... मुझे जिस प्रकार घटोत्कच प्यारा है उस भाँति तुम भी प्यारे हो !!"


इसप्रकार से स्कन्दपुराण में बार बार श्री श्यामदेव की माता  का नाम "मोरवी"  उलेखित हुआ है... इसीलिए उनकी माताश्री के सम्मान में ही श्री श्याम देव को "मोरवीनंदन" भी कहा जाता है... 




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आप सभी ऋषि वेद व्यास जी द्वारा रचित स्कन्द पुराण के माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में मोरवी नंदन श्री बर्बरीक की दिव्य चरित्र का पठन कर सकते है... स्कन्द पुराण जिसे कि एक शतकोटि पुराण कहा गया है, और जो इक्यासी हजार श्लोकों से युक्त है, एवं इसमें सात खण्ड है...


पहले खण्ड का नाम माहेश्वर खण्ड है, दूसरा वैष्णवखण्ड है, तीसरा ब्रह्मखण्ड है, चौथा काशीखण्ड एवं पांचवाँ अवन्तीखण्ड है, फिर क्रमश: नागर खण्ड एवं प्रभास खण्ड है... यह पुराण कलेवर की दृष्टि से सबसे बड़ा है, तथा इसमें लौकिक और पारलौकिक ज्ञान के अनन्त उपदेश भरे हैं... इसमें धर्म, सदाचार, योग, ज्ञान तथा भक्ति के सुन्दर विवेचन के साथ देवताओं, अनेकों वीर पुरुषो और साधु-महात्माओं के सुन्दर चरित्र पिरोये गये हैं....आज भी इसमें वर्णित आचारों, पद्धतियों के दर्शन हिन्दू समाज के घर-घरमें किये जा सकते हैं...


वीरवर मोरवीनंदन श्री बर्बरीक जी का चरित्र स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक दिया हुआ है... 'कौमारिक खंड' के ५९वे अध्याय से ६६वे अध्याय तक यह दिव्य कथा वर्णित है...


५९वा अध्याय : घटोत्कचआख्यान वर्णनम
६०वा अध्याय : मोर्वीघटोत्कच संवाद एवं घटोत्कचद्वारा मोर्व्याबर्बरीकपुत्रोत्पत्ति वर्णनम

६१वा अध्याय : महाविद्यासाधने गणेश्वरकल्प वर्णनम ( बर्बरीकआख्यान वर्णनम)
६२वा अध्याय : कालिकाया रुद्रविर्भाव वर्णनम
६३वा अध्याय : बर्बरीकवीरता वर्णनम
६४वा अध्याय : भीमततपोत्रबर्बरीकसंवाद वर्णनम
६५वा अध्याय : देवीसत्वन वर्णनम, कलेश्वरी वर्णनम
६६वा अध्याय : बर्बरीकबल वर्णनम, श्री कृष्णेनबर्बरीकशिरपूजनम कथम, गुप्तक्षेत्रेमहात्म्य वर्णनम



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"नई दिल्ली के परम श्याम भक्त  श्री विश्वनाथ वशिष्ट" जी ने बहुत ही मधुर भावो से "श्री श्याम चरित्र" में ये पंक्तियाँ लिखी है...




श्याम सदा भक्तन हितकारी, जहाँ प्रेम वहाँ श्याम बिहारी...
मोरवी लाल बड़ा बलकारी, कलयुग का है भव भयहारी...



जब जब श्याम पुकारे कोई, प्रगटे विलम्ब न क्षण की होई...
पूरण करते भक्तां आशा, श्याम श्री का घट घट बासा...



मेरे घट में वास तिहारा, अन्तर की सब जानन हारा...
सहस्त्र नेत्र अवलोकन करते, ध्यान भक्त का हर पल रखते...



श्याम नाम ही दुःख हरता है, कष्ट मिटाकर सुख करता है...
श्याम नाम संजीवन बूटी, पा लो इसको करो न त्रुटी...



श्याम चरण चित उर में लाऊं, बुद्धि विवेक में श्याम पैठाऊं...
नहीं कभी कुछ और मैं चाहूं, श्री चरणों में शीश नवाऊं...



श्याम चरित्र निज उनका ही है, मेरा कुछ भी अंश नहीं है...
"श्याम चरित्र" की अनुपम गाथा, भक्त हृदय नवावे माथा...


अमर कृति यह एक बनेगी, भक्त हृदय की गति बसेगी...
संशय नहीं सत आशय होगा, वेद पुराण ही आश्रय होगा...


तनिक नहीं है मुखवाणी ये, शास्त्र सम्मत सच वाणी ये...
वेदव्यास की लिखी निशानी, स्कन्दपुराण की है ये कहानी...


स्वयं गजानन सरस्वती माता, गुरु पिता और जननी माता...
आशीर्वाद उन्ही का फलता , तभी देव का ग्रंथ यह बनता...


यह है श्याम नाम का प्याला, अमृत का है एक निवाला...
कथा रूप में हमने पाया, श्याम धरा पर फिर से आया...


नहीं है खण्डन किन्ही अंशो का, भान नहीं तनि अपभ्रंशो का...
यह तो है एक सत्य कहानी, स्वयं श्याम ने यहाँ बखानी...


होय भरम तो करके देखो, क्या है सच यह खुद ही परखो...
जब हो जाए मंशा पूरी, बढ़ जाए जब का कष्ट से दुरी...


तब यह कथा नियम ले लेना, आश्रय श्याम चरण का करना...
औषधि यह फिर वितरण करना, अनुभव औरों को भी कहना...


हम तो बस यह शीश नवाते, श्याम चरण में ध्यान लगाते...
हे विश्वास हमारा निश्चित, भरम नहीं कोई मन में किंचित...


जितनी श्याम कथा की होगी, वर्षा उतनी प्रेम की होगी...
धरम बाँटना बड़ा सरल है, पाप धरम से बड़ा निर्बल है...


भक्त पढेंगे श्याम कथा को, स्थान न होगा मेरी व्यथा को...
नहीं कभी कुछ और में चाहूँ, श्री चरणों में शीश नवाऊं...


करते कर्म श्याम को भजना, ध्यान में हरपाल इसको रखना...
कर्म प्रधान हो जीवन सारा, चिंतन में श्री श्याम पियारा...


जहाँ सत्य है श्याम वहाँ है, जहाँ श्याम आराम वहा है...
है सन्देश यह श्यामधणी का, रखना ध्यान सदा करनी का...



!! हेतु श्याम कृपा के हैं, रखना हमेशा ध्यान !!
!! मान किये से ही मिले, मिले मान सम्मान !!



( "श्री श्याम चरित्र" के प्रथम सौपन से उद्धृत )



स्वयं  श्री श्याम बाबा मेरे कुलदेव है... उनकी कृपा से ही हमारा जीवन है... मैं व आपका और यह पूरा श्याम परिवार श्री श्याम बाबा की कृपा का ही फल मात्र है... बाबा के विपरीत सोचने का साहस भी हममे नहीं है... ऐसे ही संस्कार हमें अपने माता- पिता से मिले है...


 "आप सभी श्याम प्रेमियों एवं भक्तवृंदो के श्री चरणों में मेरा प्रणाम है..."


 "स्वयं योगेश्वर भगवन श्री कृष्ण एवं भगवती श्री आदिशक्ति माँ  जगदम्बा  जिनके  आराध्य है, उन श्री मोरवीनंदन श्री श्याम जी के श्री चरणों में प्रणाम हैं..."




 !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !!

!! लखदातर की जय !!

!! खाटू नरेश की जय !!

!! हारे के सहारे की जय !!

!! शीश के दानी की जय !!

!! तीन बाण धारी की जय !!

 !! म्हारा श्यामधणी की जय !!

  !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !!
!! टिपण्णीयाँ !!


‎हेतु श्याम कृपा के हैं, रखना हमेशा ध्यान...
मान किये से ही मिले, मिले मान सम्मान...

!! जय जय मोरवीनंदन, जय जय बाबा श्याम !!
!! जय जय शीश के  दानी, जय जय खाटू धाम !!

November 13 at 5:31pm


jai shri shyam

November 13 at 5:59pm

Bilkul Sahi hai aap jo log isko nahi mantay woh shyam bahkt nahi hai.

!!!۞!!! जय जय मोरवी नन्दन जय श्री श्याम !!!۞!!!


November 13 at 6:11pm ·

‎*** वीर बर्बरीक ने भगवान श्री  कृष्ण के कहने पर जन-कल्याण,  परोपकार व धर्म की  रक्षा  लिए आपने शीश का दान  उनको सहर्ष  दे दिया व कलयुग में  भगवान श्री  कृष्ण के अति प्रिय  नाम श्री  श्याम नाम से पूजित  होने का  वरदान प्राप्त  किया !   बर्बरीक की युद्ध दखने   की इच्छा भगवान श्री  कृष्ण ने बर्बरीक के  शीश को ऊंचे पर्वत पर  रखकर पूर्ण की | युद्ध समाप्ति पर सभी पांडवो के पूछने पर  बर्बरीक के शीश ने  उत्तर दिया की यह युद्ध केवल भगवान श्री कृष्ण  की निति के कारण जीता गया और इस युद्ध में केवल भगवान श्री कृष्ण का सुदर्शन
चक्र चलता था व  द्रौपदी  चंडी का रूप धरकर दुष्टों का लहू पी रही थी | भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को अमृत से  सींचा व कलयुग का  अवतारी  बनने का आशीर्वाद  प्रदान किया |

आज यह सच हम अपनी आखों से देख रहे हैं की उस  युग के  बर्बरीक आज के युग के  श्याम हैं और कलयुग के  समस्त  प्राणी श्याम जी के  दर्शन  मात्र से सुखी हो  जाते हैं  उनके जीवन में खुशिओं और सम्पदाओ  की बहार आने लगती है और  खाटू श्याम जी को  निरंतर भजने से  प्राणी सब प्रकार के  सुख पाता है और अंत में  मोक्ष को प्राप्त हो  जाता है |   


|| बोलो श्याम प्रभु की जय ||

November 13 at 7:30pm ·


धन्यवाद .अति सुन्दर श्री मनोज जी 

!!!۞!!! जय जय  मोरवी नन्दन जय श्री  श्याम !!!۞!!!

November 13 at 7:32pm ·



Shri Morwinandan Khatu Shyam Ji Ki Jay

November 13 at 8:42pm ·

 

अति सुन्दर ..!۞!!! जय जय मोरवी  नन्दन जय  श्री श्याम !!!۞!!!

November  13 at 11:40pm ·


दूध का दूध, पानी का पानी
शीश का दानी,महा बलवानी

November 14 at 12:20am



सत्यम शिवम सुन्दरम

November 14 at 12:30am

 ‎!!۞!! ॐ !!! सत्य मेव जयते !!! ॐ !!۞!!

November 14 at 12:36am


jai jai shri shaym ji ki jai

November 15 at 1:59am ·


Thank you so much Mukesh bhai ji, Hum sab k liye apne itna effort kiya. Aapko aur Pujniye Mahabir ji ko mera pranam.. !! Bus aise hi hum per kripa barste rahe. Shri Morwinandan Khatu Shyam Ji aap per khoob kripa barsaye. Sri Radhey !!!

November 15 at 2:41pm






Naveen Agarwal SATYA KAA AANAD HI SHYAM HAI......JAI-JAISHREE SHYAM....

November15 at 8:48pm
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