आज जीवन की इस आपा-धापी में घिरा हुआ अत्यंत ही करुण अवस्था में एक भक्त अपने आराध्य श्री श्याम बाबा की शरणागत हो एवं अपने अंतर्मन से अपने आराध्य को अपना सखा, अपना बंधू, अपना सर्वस्व समझ कर अपनी हृदय की वेदना को श्री श्याम बाबा से इसप्रकार अभिव्यक्त करता है...
कौन सुनेगा किसको सुनाऊं, किसलिए चुप बैठे हो...
छोड़ तुझे मैं किस दर जाऊं, किसलिए चुप बैठे हो...
कौन सुनेगा किसको सुनाऊं, किसलिए चुप बैठे हो...
किसको दिल का दर्द बताऊं, किसलिए चुप बैठे हो...
मेरी हालत देख जरा तू, आँख उठा करके बाबा...
मैं तो तेरी शरण पड़ा हूँ, क्यू मुझको तू बिसराता...
मेरी खता क्या, इतना बता दो, किसलिए चुप बैठे हो...
कौन सुनेगा किसको सुनाऊं किसलिए चुप बैठे हो...
क्या मैं इतना जान लूँ मुझको, समझा तुने बेगाना...
वरना दिल के घाव तुझे क्या पड़ता बाबा दिखलाना...
दर्द बड़े है, अब तो दवा दो, किसलिए चुप बैठे हो...
छोड़ तुझे मैं किस दर जाऊं, किसलिए चुप बैठे हो...
दुःख में कोई साथ ना देता, कैसे तुझको समझाऊं...
'हर्ष' तेरे बिन कौन सुनेगा, किसको जाके बतलाऊं...
अपने भगत से कुछ तो बोलो, किसलिए चुप बैठे हो...
कौन सुनेगा किसको सुनाऊं किसलिए चुप बैठे हो...
कौन सुनेगा किसको सुनाऊं, किसलिए चुप बैठे हो...
किसको दिल का दर्द बताऊं, किसलिए चुप बैठे हो...
कौन सुनेगा किसको सुनाऊं, किसलिए चुप बैठे हो...
छोड़ तुझे मैं किस दर जाऊं, किसलिए चुप बैठे हो...
!! जय जय मोरवीनंदन, जय जय बाबा श्याम !!
!! काम अधुरो पुरो करज्यो, सब भक्तां को श्याम !!
!! जय जय लखदातारी, जय जय श्याम बिहारी !!
!! जय कलयुग भवभय हारी, जय भक्तन हितकारी !!
भाव के रचियता : "श्री विनोद जी अग्रवाल जी"
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थे भी एक बार श्याम बाबा जी रो जयकारो प्रेम सुं लगाओ...
!! श्यामधणी सरकार की जय !!
!! शीश के दानी की जय !!
!! खाटू नरेश की जय !!
!! लखदातार की जय !!
!! हारे के सहारे की जय !!
!! लीले के असवार की जय !!
!! श्री मोरवीनंदन श्यामजी की जय !!