श्रीमद भागवत गीता के मतानुसार जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब भगवान् साकार रूप धारण कर दीन भक्तजन, साधु एवं सज्जन पुरुषों का उद्धार तथा पाप कर्म में प्रवृत रहने वालो का विनाश कर सधर्म की स्थापना किया करते है... उनके अवतार ग्रहण का न तो कोई निश्चित समय होता है और न ही कोई निश्चित रूप... धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि को देखकर जिस समय वे अपना प्रगट होना आवश्यक समझते है, तभी प्रगट हो जाते है...
ऐसे कृपालु भगवान के पास अपने अनन्य भक्त के लिए कुछ भी अदेय नहीं होता... परन्तु सच्चा भक्त कोई विरला ही मिलता है... यद्यपि उस सच्चिदानंद भगवान के भक्तो की विभिन्न कोटिया होती है, परन्तु जो प्राणी संसार, शरीर तथा अपने आपको सर्वथा भूलकर अनन्य भाव से नित्य निरंतर केवल श्री भगवान में स्थिर रहकर हेतुरहित एवं अविरल प्रेम करता है, एवं दीन-हीन मनुष्यों का सहारा बन परोपकार को ही अपने जीवन का ध्येय बनाता है, वही श्री भगवान को सर्वदा प्रिय होता है...
श्री भगवान के भक्तो की इसी कोटि में पाण्डव कुलभूषण श्री भीमसेन के पोत्र एवं महाबली घटोत्कच के पुत्र, मोरवीनंदन वीर शिरोमणि श्री बर्बरीक भी आते है... महाभारत के युद्ध में उपस्थित होकर वीर बर्बरीक ने अपने एक ही बाण से समस्त वीरो को आश्चर्य में डाल दिया... एवं अपनी विमल भक्ति से उन्होंने भगवान् श्री कृष्ण को भी मुग्ध कर दिया... उनके इसी अद्भुत वीरता पर प्रसन्न होकर भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें कलियुग में देव रूप में पूजित होकर भक्तों की मनोकामनाओ को पूर्ण करने का वरदान किया... एवं १४ देवियों द्वारा उनके शीश को (जिनको स्वयं मधुसुदन ने अपने हाथो में थाम रखा था) अमृत से सींचन करवाकर वीर बर्बरीक के शीश को, देवत्व प्रदान करके अजर अमर कर दिया... एवं कलिकाल में श्री बर्बरीक जी का देवत्व प्राप्त शीश राजस्थान के "खाटू" नामक पवित्र नगरी में "श्याम कुण्ड" में से श्री श्याम जी का नाम धारण कर प्रगट हुआ...
आइये हम सभी मिल श्री श्याम जी के श्री चरणों में ध्यान लगा उनके दिव्य चरित्र की वंदना करे...
पावन पवित्र है ये, अद्भुत चरित्र है ये...
पावन पवित्र है ये, अद्भुत चरित्र है ये...
खाटू नरेश मेरे, ओ खाटू नरेश मेरे...
खाटू नरेश मेरे, हारे के मित्र है ये...
कुलदेव ये हमारे, हारे के मित्र है ये...
श्रद्धा के पुष्प अर्पण, चरणों मैं तेरे करता...
सादर नमन तुम्हे कर, मैं नाम हूँ सुमिरता...
मेरे ह्रदय में अंकित, इनका ही चित्र है ये...
खाटू नरेश मेरे, हारे के मित्र है ये...
ना तुम समान दानी, इस विश्व में है दूजा...
चारो दिशाओ में अब, होती है तेरी पूजा...
जो शीश के दानी, उनका ही जिक्र है ये...
खाटू नरेश मेरे, हारे के मित्र है ये...
आकाश पृथ्वी सारे, सूरज व चाँद तारे...
करते है जिनको वंदन, कुलदेव है हमारे...
चिंताओ का है मेरी, इनको ही फिक्र है ये...
खाटू नरेश मेरे, हारे के मित्र है ये...
पग-पग पे साथ इनका, मैंने सदा है पाया...
हर कष्ट की घड़ी में, इनको ही मैंने ध्याया...
क्या करे दे 'श्यामसुन्दर', लीला विचित्र है ये...
खाटू नरेश मेरे, हारे के मित्र है ये...
पावन पवित्र है ये, अद्भुत चरित्र है ये...
पावन पवित्र है ये, अद्भुत चरित्र है ये...
खाटू नरेश मेरे, ओ खाटू नरेश मेरे...
खाटू नरेश मेरे, हारे के मित्र है ये...
कुलदेव ये हमारे, हारे के मित्र है ये...
!! जय जय मोरवीनंदन, जय जय बाबा श्याम !!
!! काम अधुरो पुरो करज्यो, सब भक्तां को श्याम !!
!! जय जय लखदातारी, जय जय श्याम बिहारी !!
!! जय कलयुग भवभय हारी, जय भक्तन हितकारी !!
भजन : "श्री श्यामसुन्दर जी"
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थे भी एक बार श्याम बाबा जी रो जयकारो प्रेम सुं लगाओ...
!! श्यामधणी सरकार की जय !!
!! शीश के दानी की जय !!
!! खाटू नरेश की जय !!
!! लखदातार की जय !!
!! हारे के सहारे की जय !!
!! लीले के असवार की जय !!
!! श्री मोरवीनंदन श्यामजी की जय !!