श्री वेदव्यास विरचित स्कन्दपुराण के अनुसार पाण्डव कुलभूषण भीमसेन पुत्र घटोत्कच के द्वारा शास्त्रार्थ की प्रतियोगिता जीतने के पश्चात उनका विवाह मुरकन्या कामकटंककटा (मोरवी) से शुभलग्न में पांडवो की राजधानी इन्द्रप्रस्थ में श्री कृष्ण के समक्ष संपन्न कराया गया... नवयुगल वर-वधु को देख माता कुंती एवं रानी द्रौपदी अत्यंत प्रसन्न हुई... विबाह सम्बन्ध हो जाने पर महाराज युधिष्ठिर ने घटोत्कच का आदर सत्कार कर उसे भार्या मोरवी सहित अपने राज्य हिडिम्बवन जाने का आदेश दिया... अपने पाण्डव पृतगणों एवं भगवान श्री कृष्ण से आशीर्वाद प्राप्त कर घटोत्कच एवं रानी मोरवी हिडिम्बवन चले गए...
हिडिम्बवन में माता हिडिम्बा नवयुगल पुत्र घटोत्कच एवं पुत्रवधु मोरवी को देखकर अति प्रसन्न हुई और मोरवी को पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे स्वयं तप एवं भक्ति करने एकांत स्थान पर चली गयी और तपस्या में लीन हो गयी... घटोत्कच तथा उनकी रानी मोरवी आनंदपूर्वक अपनी राजधानी में रहने लगे...
लेकिन जब दो शक्ति संपन्न सभ्यातो का, व्यक्तियों का, विचारों का संसर्ग होता है, तो उससे महान शक्ति जन्म लेती है, और जिस बालक की प्रशंसा स्वयं भगवन श्री कृष्ण ने पूर्वकाल में ही कर दी हो, तो वो कोई साधारण बालक तो हो ही नहीं सकता... इसलिए ठीक नौ माह पश्चात रानी मोरवी के गर्भ से उस महातेजस्वी, बालसूर्य के समान, कांतिमान बालक का जन्म हुआ...जो जन्म लेते ही युवावस्था को प्राप्त हो अपने माता पिता के समक्ष कर जोड़ खड़ा हो गया...नवजात शिशु को चमत्कारिक रूप से युवावस्था में प्राप्त होते देख, घटोत्कच एवं रानी मोरवी को बहुत विस्मय हुआ...
तत्पश्चात रानी मोरवी, महाबली घटोत्कच से इसप्रकार कहने लगी :
महाबली घटोत्कच ने विस्मयित होकर कहा -
अपने माता-पिता को इसप्रकार विस्मय में पड़ा देख बालसूर्य के समान उस युवक ने अपनी माता मोरवी को प्रणाम कर इसप्रकार कहा -
"नौ माह तक मुझे अपने गर्भ में रखने वाली, हे मेरी जननी माता, अपने पुत्र का प्रणाम स्वीकार करे..."
रानी मोरवी ने आशीर्वचन देते हुए कहा -
"आयुष्मान भवः पुत्र, आयुष्मान भवः"
ततपश्चात उस युवक ने अपने पिता घटोत्कच को प्रणाम कर इसप्रकार कहा -

महाबली घटोत्कच ने भी आशीर्वचन देते हुए कहा -

यह सुन रानी मोरवी ने इसप्रकार कहा -

यह सुन उस तेजस्वी युवक ने हाथ जोड़ कर अपनी माता से कहा -

यह सुन रानी मोरवी ने अपने पुत्र के शीश पर स्नेह से हाथ फेरते हुए कहा -

अपनी माता के इन करुण भाव से परिपूर्ण वचनों को सुनकर उस युवक ने कहा -

तत्पश्चात उस तेजस्वी युवक ने पुनः अपने माता-पिता को हाथ जोड़ इसप्रकार कहा -

अपने पुत्र की इस ओजस्वी वाणी को सुन महाबली घटोत्कच ने उसे छाती से लगाकर कहा -

पिता को आभार व्यक्त करते हुए, बर्बरीक ने अपने पिता घटोत्कच को प्रणाम करते हुए कहा -

पुत्र बर्बरीक के इन वचनों को सुनकर घटोत्कच ने कहा -

तदन्तर रानी मोरवी को घर पर ही छोड़ कर महाबली घटोत्कच, अपने तेजस्वी पुत्र बर्बरीक को साथ ले भगवन श्री कृष्ण से मिलने आकाशमार्ग से द्वारिका की ओर चल पड़े...
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आप सभी श्याम प्रेमी भक्त वृन्द वीर बर्बरीक के दिव्य जीवन चरित्र को नीचे दी गयी लिंक पर क्लीक कर पढ़ भी सकते है...
!! स्कन्दपुराणोक्त वीर बर्बरीक उपाख्यान !! : Skandpuranokt Veer Barbarik Upakhyaan
प्रेमियों, माता मोरवी जिन्होंने एक ऐसे तेजेस्वी, बालसूर्य के सामान आज्ञाकारी, वीर को जन्म दिया, जिसने श्री कृष्ण आज्ञा से आजीवन ब्रम्हचर्य व्रत धारण करके, शक्ति अराधना कर, जनकल्याण के लिए अपने सम्पूर्ण जीवन को समर्पित किया एवं अपनी विमल भक्ति के द्वारा परमेश्वर श्री कृष्ण से अमर वरदान प्राप्त किया और स्वतंत्र सत्ता प्राप्त देव बने...
इतिहास में ऐसे उदहारण नगण्य ही है, अतः माता मोरवी, जिन्होंने ऐसे वीर पुत्र वीर बर्बरीक जिन्हें अब हम खाटूश्याम जी के नाम से जानते है, को जन्म देकर हम सभी श्याम प्रेमियों को श्याम कृपा प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया.... ऐसी माता मोरवी के श्री चरणों में शत शत नमन हैं...
!! ॐ मोर्वी नन्दनाय विद् महे श्याम देवाय धीमहि तन्नो बर्बरीक प्रचोदयात्। !!
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Jai shree shyam,Shri khatu shyam ji Mandir
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ReplyDeleteNice blog
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आपकी बातें समझने में मुझे कोई कठिनाई नहीं हुई। आपकी सामरिक भाषा मुझे पसंद आई। मेरा यह लेख भी पढ़ें खाटू श्याम मंदिर का इतिहास
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