उपरोक्त छवि श्री श्याम बाबा के निज धाम खाटू के श्री मंदिर में अंकित उस शिलालेख की है, जिसमे बाबा श्याम का संक्षिप्त जीवन परिचय दिया हुआ है... शिला लेख उस लेख को कहते है जो की किसी पौराणिक मंदिर, एतिहासिक स्थानों पर उस स्थान का महात्म्य एवं उससे संबंधित देव की कथा को शिला में अंकित किया जाता है, जिससे नवआगंतुकों को उस स्थान के बारे में उचित जानकारी प्राप्त हो...
यह छवि श्री महाबीर सराफ जी द्वारा गत अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी द्वादशी में उनके खाटू धाम प्रवास के दौरान ली गयी है... आप सभी भक्तवृंदो के पढ़ने की सुविधा के लिए, उपरोक्त शिलालेख में उक्त बाबा श्याम का संक्षिप्त जीवन परिचय नीचे अक्षरसः लिख रहा हूँ...
!! शीश के दानी श्री श्याम बाबा का संक्षिप्त जीवन परिचय !!
द्वापर के अंतिम चरण में हस्तिनापुर में कौरव एवम पांडव राज्य करते थे, पाण्डवों के वनवासकाल में भीम का विवाह हिडिम्बा के साथ हुआ... उसके एक पुत्र हुआ, जिसका नाम घटोत्कच रखा गया... पाण्डवों का राज्याभिषेक होने पर घटोत्कच का कामकटंकटा के साथ विवाह और उससे बर्बरीक का जन्म हुआ.. उसने भगवती जगदम्बा से अजेय होने का वरदान प्राप्त किया...
जब महाभारत युद्ध की रणभेरी बजी, तब वीर बर्बरीक युद्ध देखने की इच्छा से कुरु क्षेत्र की और प्रस्थान किया, मार्ग में विप्र रूप धारी श्री कृष्णा से साक्षात्कार हुआ.. विप्र के पूछने पर उसने अपने आप को योद्धा व दानी बताया.. परीक्षा स्वरुप उसने पेड़ के प्रत्येक पत्ते को एक ही बाण से बेंध दिया तथा श्री कृष्ण के पैर के नीचे वाले पत्ते को भी बेंधकर वह बाण वापस तरकस में चला गए... विप्र वेशधारी श्री कृष्ण के पूछने पर उसने कहा कि मैं हारने वाले पक्ष में लडूंगा..श्री कृष्ण ने कहा कि अगर तुम महादानी हो तो अपना शीश समर भूमि की बलि हेतु दान में दे दो... ततपश्चात् श्री कृष्ण के द्वारा अपना असली परिचय दिए जाने के बाद उसने महाभारत युद्ध देखने कि इच्छा प्रकट की... रात भर भजन पूजन कर प्रातः फाल्गुन शुक्ला द्वादशी को स्नान पूजा आदि करके, अपने हाथ से अपना शीश श्री कृष्ण को दान कर दिया... श्री कृष्ण ने उस शीश को युद्ध अवलोकन के लिए, एक ऊँचे स्थान पर स्थापित कर दिया...
युद्ध में विजय श्री प्राप्त होने पर पांडव विजय के श्री के सम्बन्ध में वाद-विवाद करने लगे... तब श्री कृष्ण ने कहा की इसका निर्णय बर्बरीक का शीश कर सकता है... शीश ने बताया कि युद्ध में श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र चल रहा था और द्रौपदी महाकाली के रूप में रक्त पान कर रही थी.. श्री कृष्ण ने प्रसन्न होकर शीश को वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे 'श्याम' नाम से पूजित होगे तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष कि प्राप्ति होगी... स्वप्न दर्शनोंपरांत बाबा श्याम, खाटू धाम में स्थित -श्याम कुण्ड से प्रकट होकर अपने कृष्ण विराट सालिग्राम श्री श्याम रूप में सम्वत १७७७ में निर्मित वर्तमान मंदिर में भक्तों कि मनोकामनाए पूर्ण कर रहे है...
!! बोलो नीले के असवार, शीश के दानी लखदातार, श्यामप्रभु की जय !!
जैसा की हम सभी जानते है, श्री बर्बरीक जी की माता कामकटंकटा, मूर दैत्य की पुत्री थी... पिता का नाम मूर होने से उनको "मोरवी" अर्थात "मूर की पुत्री" कहा जाता है... एवं स्कन्दपुराण में जगह जगह पर श्री मोरवीनन्दन श्री बर्बरीक जी की माता कामकटंकटा को मोरवी नाम से भी संबोधित किया गया है... स्वयं भगवन श्री कृष्ण ने श्री बर्बरीक को "मोर्व्ये" अर्थात "मोरवी के पुत्र" कह कर इस प्रकार संबोधित किया है...
श्री कृष्ण उवाच-
वत्स ! मोर्व्ये ! ब्रूहि त्वं, सर्वं प्रच्छ, यदिच्छ्सी !
यथा घटोत्क्चो मह्यं सु प्रियश्च यथा भवान !! { स्कन्दपुराण, कौ. ख. ६१.१४}
भावार्थ: "तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा- पुत्र मोर्व्ये ! बोलो जो बात पूछना चाहते हो, सब पूछो... मुझे जिस प्रकार घटोत्कच प्यारा है उस भाँति तुम भी प्यारे हो !!"
इसप्रकार से स्कन्दपुराण में बार बार श्री श्यामदेव की माता का नाम "मोरवी" उलेखित हुआ है... इसीलिए उनकी माताश्री के सम्मान में ही श्री श्याम देव को "मोरवीनंदन" भी कहा जाता है...
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आप सभी ऋषि वेद व्यास जी द्वारा रचित स्कन्द पुराण के माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में मोरवी नंदन श्री बर्बरीक की दिव्य चरित्र का पठन कर सकते है... स्कन्द पुराण जिसे कि एक शतकोटि पुराण कहा गया है, और जो इक्यासी हजार श्लोकों से युक्त है, एवं इसमें सात खण्ड है...
पहले खण्ड का नाम माहेश्वर खण्ड है, दूसरा वैष्णवखण्ड है, तीसरा ब्रह्मखण्ड है, चौथा काशीखण्ड एवं पांचवाँ अवन्तीखण्ड है, फिर क्रमश: नागर खण्ड एवं प्रभास खण्ड है... यह पुराण कलेवर की दृष्टि से सबसे बड़ा है, तथा इसमें लौकिक और पारलौकिक ज्ञान के अनन्त उपदेश भरे हैं... इसमें धर्म, सदाचार, योग, ज्ञान तथा भक्ति के सुन्दर विवेचन के साथ देवताओं, अनेकों वीर पुरुषो और साधु-महात्माओं के सुन्दर चरित्र पिरोये गये हैं....आज भी इसमें वर्णित आचारों, पद्धतियों के दर्शन हिन्दू समाज के घर-घरमें किये जा सकते हैं...
वीरवर मोरवीनंदन श्री बर्बरीक जी का चरित्र स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक दिया हुआ है... 'कौमारिक खंड' के ५९वे अध्याय से ६६वे अध्याय तक यह दिव्य कथा वर्णित है...
५९वा अध्याय : घटोत्कचआख्यान वर्णनम
६०वा अध्याय : मोर्वीघटोत्कच संवाद एवं घटोत्कचद्वारा मोर्व्याबर्बरीकपुत्रोत्पत्ति वर्णनम
६१वा अध्याय : महाविद्यासाधने गणेश्वरकल्प वर्णनम ( बर्बरीकआख्यान वर्णनम)
६२वा अध्याय : कालिकाया रुद्रविर्भाव वर्णनम
६३वा अध्याय : बर्बरीकवीरता वर्णनम
६४वा अध्याय : भीमततपोत्रबर्बरीकसंवाद वर्णनम
६५वा अध्याय : देवीसत्वन वर्णनम, कलेश्वरी वर्णनम
६६वा अध्याय : बर्बरीकबल वर्णनम, श्री कृष्णेनबर्बरीकशिरपूजनम कथम, गुप्तक्षेत्रेमहात्म्य वर्णनम
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"नई दिल्ली के परम श्याम भक्त श्री विश्वनाथ वशिष्ट" जी ने बहुत ही मधुर भावो से "श्री श्याम चरित्र" में ये पंक्तियाँ लिखी है...
श्याम सदा भक्तन हितकारी, जहाँ प्रेम वहाँ श्याम बिहारी...
मोरवी लाल बड़ा बलकारी, कलयुग का है भव भयहारी...
जब जब श्याम पुकारे कोई, प्रगटे विलम्ब न क्षण की होई...
पूरण करते भक्तां आशा, श्याम श्री का घट घट बासा...
मेरे घट में वास तिहारा, अन्तर की सब जानन हारा...
सहस्त्र नेत्र अवलोकन करते, ध्यान भक्त का हर पल रखते...
श्याम नाम ही दुःख हरता है, कष्ट मिटाकर सुख करता है...
श्याम नाम संजीवन बूटी, पा लो इसको करो न त्रुटी...
श्याम चरण चित उर में लाऊं, बुद्धि विवेक में श्याम पैठाऊं...
नहीं कभी कुछ और मैं चाहूं, श्री चरणों में शीश नवाऊं...
श्याम चरित्र निज उनका ही है, मेरा कुछ भी अंश नहीं है...
"श्याम चरित्र" की अनुपम गाथा, भक्त हृदय नवावे माथा...
अमर कृति यह एक बनेगी, भक्त हृदय की गति बसेगी...
संशय नहीं सत आशय होगा, वेद पुराण ही आश्रय होगा...
तनिक नहीं है मुखवाणी ये, शास्त्र सम्मत सच वाणी ये...
वेदव्यास की लिखी निशानी, स्कन्दपुराण की है ये कहानी...
स्वयं गजानन सरस्वती माता, गुरु पिता और जननी माता...
आशीर्वाद उन्ही का फलता , तभी देव का ग्रंथ यह बनता...
यह है श्याम नाम का प्याला, अमृत का है एक निवाला...
कथा रूप में हमने पाया, श्याम धरा पर फिर से आया...
नहीं है खण्डन किन्ही अंशो का, भान नहीं तनि अपभ्रंशो का...
यह तो है एक सत्य कहानी, स्वयं श्याम ने यहाँ बखानी...
होय भरम तो करके देखो, क्या है सच यह खुद ही परखो...
जब हो जाए मंशा पूरी, बढ़ जाए जब का कष्ट से दुरी...
तब यह कथा नियम ले लेना, आश्रय श्याम चरण का करना...
औषधि यह फिर वितरण करना, अनुभव औरों को भी कहना...
हम तो बस यह शीश नवाते, श्याम चरण में ध्यान लगाते...
हे विश्वास हमारा निश्चित, भरम नहीं कोई मन में किंचित...
जितनी श्याम कथा की होगी, वर्षा उतनी प्रेम की होगी...
धरम बाँटना बड़ा सरल है, पाप धरम से बड़ा निर्बल है...
भक्त पढेंगे श्याम कथा को, स्थान न होगा मेरी व्यथा को...
नहीं कभी कुछ और में चाहूँ, श्री चरणों में शीश नवाऊं...
करते कर्म श्याम को भजना, ध्यान में हरपाल इसको रखना...
कर्म प्रधान हो जीवन सारा, चिंतन में श्री श्याम पियारा...
जहाँ सत्य है श्याम वहाँ है, जहाँ श्याम आराम वहा है...
है सन्देश यह श्यामधणी का, रखना ध्यान सदा करनी का...
!! हेतु श्याम कृपा के हैं, रखना हमेशा ध्यान !!
!! मान किये से ही मिले, मिले मान सम्मान !!
( "श्री श्याम चरित्र" के प्रथम सौपन से उद्धृत )
स्वयं श्री श्याम बाबा मेरे कुलदेव है... उनकी कृपा से ही हमारा जीवन है... मैं व आपका और यह पूरा श्याम परिवार श्री श्याम बाबा की कृपा का ही फल मात्र है... बाबा के विपरीत सोचने का साहस भी हममे नहीं है... ऐसे ही संस्कार हमें अपने माता- पिता से मिले है...
"आप सभी श्याम प्रेमियों एवं भक्तवृंदो के श्री चरणों में मेरा प्रणाम है..."
"स्वयं योगेश्वर भगवन श्री कृष्ण एवं भगवती श्री आदिशक्ति माँ जगदम्बा जिनके आराध्य है, उन श्री मोरवीनंदन श्री श्याम जी के श्री चरणों में प्रणाम हैं..."
!! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !!
!! लखदातर की जय !!
!! खाटू नरेश की जय !!
!! हारे के सहारे की जय !!
!! शीश के दानी की जय !!
!! तीन बाण धारी की जय !!
!! म्हारा श्यामधणी की जय !!
!! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !!
!! टिपण्णीयाँ !!
मान किये से ही मिले, मिले मान सम्मान...
!! जय जय मोरवीनंदन, जय जय बाबा श्याम !!
!! जय जय शीश के दानी, जय जय खाटू धाम !!
November 13 at 5:31pm
jai shri shyam
Bilkul Sahi hai aap jo log isko nahi mantay woh shyam bahkt nahi hai.
!!!۞!!! जय जय मोरवी नन्दन जय श्री श्याम !!!۞!!!
November 13 at 6:11pm ·
*** वीर बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण के कहने पर जन-कल्याण, परोपकार व धर्म की रक्षा लिए आपने शीश का दान उनको सहर्ष दे दिया व कलयुग में भगवान श्री कृष्ण के अति प्रिय नाम श्री श्याम नाम से पूजित होने का वरदान प्राप्त किया ! बर्बरीक की युद्ध दखने की इच्छा भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को ऊंचे पर्वत पर रखकर पूर्ण की | युद्ध समाप्ति पर सभी पांडवो के पूछने पर बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया की यह युद्ध केवल भगवान श्री कृष्ण की निति के कारण जीता गया और इस युद्ध में केवल भगवान श्री कृष्ण का सुदर्शन
चक्र चलता था व द्रौपदी चंडी का रूप धरकर दुष्टों का लहू पी रही थी | भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को अमृत से सींचा व कलयुग का अवतारी बनने का आशीर्वाद प्रदान किया |
आज यह सच हम अपनी आखों से देख रहे हैं की उस युग के बर्बरीक आज के युग के श्याम हैं और कलयुग के समस्त प्राणी श्याम जी के दर्शन मात्र से सुखी हो जाते हैं उनके जीवन में खुशिओं और सम्पदाओ की बहार आने लगती है और खाटू श्याम जी को निरंतर भजने से प्राणी सब प्रकार के सुख पाता है और अंत में मोक्ष को प्राप्त हो जाता है |
|| बोलो श्याम प्रभु की जय ||
धन्यवाद .अति सुन्दर श्री मनोज जी
!!!۞!!! जय जय मोरवी नन्दन जय श्री श्याम !!!۞!!!
November 13 at 7:32pm ·
Shri Morwinandan Khatu Shyam Ji Ki Jay
अति सुन्दर ..!۞!!! जय जय मोरवी नन्दन जय श्री श्याम !!!۞!!!
November 13 at 11:40pm ·
दूध का दूध, पानी का पानी
शीश का दानी,महा बलवानी
सत्यम शिवम सुन्दरम
!!۞!! ॐ !!! सत्य मेव जयते !!! ॐ !!۞!!
November 14 at 12:36am
jai jai shri shaym ji ki jai
Thank you so much Mukesh bhai ji, Hum sab k liye apne itna effort kiya. Aapko aur Pujniye Mahabir ji ko mera pranam.. !! Bus aise hi hum per kripa barste rahe. Shri Morwinandan Khatu Shyam Ji aap per khoob kripa barsaye. Sri Radhey !!!
November 15 at 2:41pm
Naveen Agarwal SATYA KAA AANAD HI SHYAM HAI......JAI-JAISHREE SHYAM....
प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (22/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
वंदना दीदी...
ReplyDeleteश्री श्याम देव की कथा को लोगो तक पहुचाने के इस छोटे से प्रयास को चर्चामंच के माध्यम से जन जन तक पहुचने के लिए आपका धन्यवाद में शब्दों के माध्यम से व्यक्त नहीं कर सकता... मैं तो केवल इतना ही कह सकता हूँ...
जितनी श्याम कथा की होगी, वर्षा उतनी प्रेम की होगी...
धरम बाँटना बड़ा सरल है, पाप धरम से बड़ा निर्बल है...
भक्त पढेंगे श्याम कथा को, स्थान न होगा मेरी व्यथा को...
नहीं कभी कुछ और में चाहूँ, श्री चरणों में शीश नवाऊं...
!! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !!
!! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !!
जय श्री श्याम!
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ReplyDeleteAapaka yah pryas sarahaniya ha.Me naman karata hun sabhi sheesh ke daani ke bhakton ko. Shyamdhani Ki jay
ReplyDeleteJai shree shyam,Shri khatu shyam ji Mandir
ReplyDelete| Khatu shyam ji Temple|
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Jai shree shyam
ReplyDeleteShri khatu shyam ji Mandir
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ReplyDeletekhatushyamji temple live darshan
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