इस संसार सागर में सभी प्रकार से हारे हुये अपने निज भक्तों से इष्टदेव, कुलदेव, खाटूपति श्री श्याम बाबा के ये कौल वचन है...
किसी का तुझे जब सहारा ना हो, जहां में कोई जब तुम्हारा ना हो...
तब तुम शरण मेरी आ जाना रे, मेरा दर खुला है, खुला ही रहेगा...
तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये... तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये...
तब तुम शरण मेरी आ जाना रे, मेरा दर खुला है, खुला ही रहेगा...
तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये... तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये...
मिली जो ज़माने से ठोकर तुझे, गले अपने प्यारे लगा लूँगा मैं...
किया तेरे अपनों ने रुसवा अगर, तुझे अपना प्यारे बना लूँगा मैं...
झुकना तुझे गर गंवारा ना हो, अकेले में तेरा गुजारा ना हो...
तब तुम शरण मेरी आ जाना रे, मेरा दर खुला है, खुला ही रहेगा...
तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये... तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये...
किया तेरे अपनों ने रुसवा अगर, तुझे अपना प्यारे बना लूँगा मैं...
झुकना तुझे गर गंवारा ना हो, अकेले में तेरा गुजारा ना हो...
तब तुम शरण मेरी आ जाना रे, मेरा दर खुला है, खुला ही रहेगा...
तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये... तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये...
नहीं काम तेरे कोई आयेगा, मुसीबत में साथी बनूँगा तेरा...
भँवर में अगर नाँव फँस जाये तो, मेरा नाम दिल से पुकारो जरा...
जब कश्ती का कोई किनारा ना हो, मांझी जो कोई तुम्हारा ना हो...
तब तुम शरण मेरी आ जाना रे, मेरा दर खुला है, खुला ही रहेगा...
तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये... तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये...
भँवर में अगर नाँव फँस जाये तो, मेरा नाम दिल से पुकारो जरा...
जब कश्ती का कोई किनारा ना हो, मांझी जो कोई तुम्हारा ना हो...
तब तुम शरण मेरी आ जाना रे, मेरा दर खुला है, खुला ही रहेगा...
तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये... तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये...
किसी दीन का तु जो साथी बने, तुझे साथ मेरा भी मिल जायेगा...
अगर 'हर्ष' स्वार्थ का पुतला बना, अकेला तु खुद को अरे पायेगा...
किस्मत का रोशन सितारा ना हो, किसी ने भी मुड़के पुकारा ना हो...
तब तुम शरण मेरी आ जाना रे, मेरा दर खुला है, खुला ही रहेगा...
तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये... तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये...
अगर 'हर्ष' स्वार्थ का पुतला बना, अकेला तु खुद को अरे पायेगा...
किस्मत का रोशन सितारा ना हो, किसी ने भी मुड़के पुकारा ना हो...
तब तुम शरण मेरी आ जाना रे, मेरा दर खुला है, खुला ही रहेगा...
तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये... तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये...
किसी का तुझे जब सहारा ना हो, जहां में कोई जब तुम्हारा ना हो...
तब तुम शरण मेरी आ जाना रे, मेरा दर खुला है, खुला ही रहेगा...
तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये... तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये...
तब तुम शरण मेरी आ जाना रे, मेरा दर खुला है, खुला ही रहेगा...
तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये... तुम्हारे लिये, ऐ हारे हुये...
भजन : "श्री विनोद अग्रवाल जी"